Sunday, 27 October 2013

Vihangam Yoga - Best Meditation Technique!

                            क्या है विहंगम योग ?


सेवा सत्संग और साधना की त्रिवेणी है | ज्ञान का वास्तविक स्वरुप है | ज्ञान का चेतन स्वरुप है | यह भक्ति की चेतन युक्ति है,ये भक्ति का चेतन मार्ग है |एक परिभाषा नहीं है,अनन्त- अनन्त परिभाषाएँ हैं ,यह हमारी भारत की प्राचिनत्तम विद्या है |भारत की प्राचीनत्तम विद्या का नाम ब्रह्म विद्या है | यह भक्ति का विशुद्ध स्वरुप है,यह प्रेम की प्रकाष्ठा है, यह प्रेम का वास्तविक स्वरुप है, यह श्रद्धा का वास्तविक स्वरुप है, स्वयं से जुड़ने की विद्या है | उस परमात्म-शक्ति से  जुड़ने की विद्या है | 

Friday, 25 October 2013

Vihangam Yoga - Best Meditation Technique!





यह जो ब्रह्मविद्या है यह अमृतजा है, अमृत से उत्पन्न है, अमृत का क्या अर्थ है? क्या अमृत कोई पेय पदार्थ है जिसे पीकर अमरता प्राप्त हो जाती है, या वह कोई रसायन है? अमृत का अर्थ है- 'यो न मृतः' जो मरा नहीं | जो मरता नहीं वह उत्पन्न भी नहीं होता, वह शाश्वत नित्य अनादि होता है |उसमें किसी प्रकार का ह्रास-विकास नहीं होता, वह जो अमृत तत्त्व है वह ईश्वर की सत्ता है |

                                                                   -संत प्रवर विज्ञान देव जी महाराज

Tuesday, 22 October 2013

Vihangam Yoga - Best Meditation Technique!



                   



स्वर्वेद एक ऐसा सद्ग्रन्थ है ,जिसमें मात्र सद्गुरु की अनुभव वाणी है, जिस ज्ञान को उन्होंने समाधिजन्य अवस्था में प्राप्त किया उसी ज्ञान को लिपिबद्ध किया |स्वामी जी ने कभी भी किसी दूसरे ग्रन्थ का सहारा नहीं लिया | क्योंकि उनकी भौतिक शिक्षा शून्य थी, उनके पास मात्र एक विद्या थी और वह थी आध्यात्मिक विद्या
विहंगम योग केवल धारणा, ध्यान एवं समाधि की ही बात नहीं करता, मानव को गूढ़ आध्यात्मिकता की ओर ही नहीं ले जाता बल्कि विहंगम योग के द्वारा तो सर्वांगीण विकास होता है | संस्थान की सामाजिक और आध्यात्मिक गतिविधियाँ सतत् संचालित हैं |संस्थान मानव-सेवा का कार्य करता है |सामाजिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार का कार्य इस संस्थान द्वारा संचालित होता है |  



Sunday, 20 October 2013

Vihangam Life: Fly Free-A life transforming residential workshop









  • Swarved Kathamrit by Sant Pravar Shri Vigyandeo Ji Maharaj
  • Doubt clarification by Sant Pravar Himself, Darshan & Ashirvachan
  • Advanced meditation, Aasan-pranayam training
  • A practical, easy to adopt, daily health package
  • Special, Sattvik food
  • Free Ayurvedic and medical consultation
  • One-to-one guidance from well experienced Vihangam Yoga practitioners
  • Books and medicines 
  • ...and a lot more.



Vihangam Yoga is non-profit organization. Mediation training is available free of cost across the world. The seva contribution requested here is mainly to cover the expenses incurred.
  For more information please contact us:- +91 9235597790 (Piyush Kumar)






Saturday, 19 October 2013





योग में स्थित होकर कर्म करो। जिससे कर्म की सिद्धि और असिद्धि में समान विचार रहे। ऐसा न कि कर्म करने के पश्चात उनके अच्छे या बुरे फल प्राप्त होने से अथवा सफल या असफल होने के हर्ष या विषाद से चित्त में चंचलता हो, या कर्म के फल की प्राप्ति में विलम्ब देख कर उन्हें असिद्ध अर्थात फलीभूत न होना समझ कर चित्त में उद्विग्नता हो, अतः इन दोनों परिस्थितियों में स्थिर चित्त रहना, योग में स्थित होकर कर्म से ही सम्भवहै |    

Monday, 14 October 2013

एक साधक जब विहंगम योग की  क्रियात्मक साधना का अभ्यास करता है, तो उसके मस्तिष्क की तरंगें में परिवर्तन होता है | अल्फा होती हैं | उसके मस्तष्क में अल्फा, बीटा तरंगें कैसे प्रभावित हो रही हैं, शरीर में क्या परिवर्तन हो रहा है , श्वाँस की क्रियाओं में क्या परिवर्तन हो रहा है | आज अनेकों वैज्ञानिक विश्व के अनेक देशों में इस पर शोध कर रहे हैं |

                                                                    -संतप्रवर विज्ञान देव जी महाराज

Wednesday, 9 October 2013











जीवन मात्र भौतिक इन्द्रियों तक सीमित न रहे | हमारा जीवन आध्यात्मिक हो, फिर हम संसार के कार्यों को भी करें | अध्यात्म का अर्थ पलायन नहीं है | विहंगम योग का सन्देश यह नहीं है कि अपने कर्त्तव्यों का पालन न करो | जो भी सांसारिक कर्त्तव्य है उनका उचित रीति से पालन करो, लेकिन एक जो महान् कर्त्त्व्य है सर्वोत्कृष्ट कर्त्तव्य है, जो प्रधान कर्त्तव्य है उसके प्रति भी सचेष्ट हो जाओ |
                                                                 -संत प्रवर विज्ञान देव जी महाराज