संसार में बिना कर्म किये
हम रह नहीं सकते |कर्म करते हैं और वह बन्धन का कारण होता है |एक ऐसी अवस्था भी आ जाती
है जब हमारा कर्म बन्धन का कारण नहीं बन पाता |यह ब्रह्मविद्या के द्वारा होता है
| यह ब्रह्मविद्या का आन्तरिक स्वरुप है |जिस जीवन में ब्रह्मविद्या का प्रकाश नहीं
है वह जीवन मृतक के समान है |
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